Srimad Bhagavad Gita Chapter 9 Verse 19

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च । 
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ।। 19 ।। 

मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ ।   हे अर्जुन ! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत् असत् भी मैं ही हूँ । (19)

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