Srimad Bhagavad Gita Chapter 7 Verse 8, 9

रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः । 
प्रणवः सर्वदेवेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ।।  8 ।। 
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां तेजश्चास्मि विभावसौ । 
जीवनं सर्वेभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ।।  9 ।। 

हे अर्जुन ! जल में मैं रस हूँ ।   चंद्रमा और सूर्य में मैं प्रकाश हूँ ।   संपूर्ण वेदों ओमकार (ॐ) हूँ ।   आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ ।   मैं पृथ्वी में पवित्र गंध और अग्नि में तेज हूँ ।   संपूर्ण भूतों में उनका जीवन हूँ अर्थात् जिससे वे जीते हैं वह तत्त्व मैं हूँ तथा तपस्वियों में तप मैं हूँ ।  (8, 9)

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