सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद् व्यापाश्रयः । मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ।। 56 ।।
मेरे परायण हुआ कर्मयोगी तो सम्पूर्ण कर्मों को सदा करता हुआ भी मेरी कृपा से सनातन अविनाशी परम पद को प्राप्त हो जाता है । (56)