Srimad Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 17

श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरैः । 
अफलाकांक्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते ।। 17 ।। 

फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों द्वारा परम श्रद्धा से किये हुए उस पूर्वोक्त तीन प्रकार के तप को सात्त्विक कहते हैं । (17)

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