Srimad Bhagavad Gita Chapter 9 Verse 30

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् । 
साधुरेव मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ।। 30 ।।

यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है अर्थात् उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है । (30)

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