Srimad Bhagavad Gita Chapter 7 Verse 27

इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत । 
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परंतप ।।  27 ।। 

हे भरतवंशी अर्जुन ! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न हुए सुख-दुःखादि द्वन्द्वरूप मोह से संपूर्ण प्राणी अति अज्ञानता को प्राप्त हो रहे हैं ।   (27)

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