Srimad Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 32

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन । 
सुखं वा यदि वा दुःखं योगी परमो मतः ।।  32 ।। 

हे अर्जुन ! जो योगी अपनी भाँति सम्पूर्ण भूतों में सम देखता है और सुख अथवा दुःख को भी सबमें सम देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है ।  (32)

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