Srimad Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 28

युंजन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः । 
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ।।  28 ।। 

वह पापरहित योगी इस प्रकार निरन्तर आत्मा को परमात्मा में लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्म परमात्मा की प्राप्तिरूप अनन्त आनन्द का अनुभव करता है ।  (28)

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