Srimad Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 29

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् । 
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ।।  29 ।। 

तत्सदिति श्रीमद् भागवद् गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मसंन्यासयोगो नाम पंचमोऽध्यायः ।।  5 ।। 

मेरा भक्त मुझको सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वरों का भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण भूत-प्राणियों का सुहृद् अर्थात् स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी, ऐसा तत्त्व से जानकर शान्ति को प्राप्त होता है ।  (29)

इस प्रकार उपनिषद, ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र रूप श्रीमद् भगवद् गीता के श्रीकृष्णअर्जुन संवाद में कर्मसंन्यास योगनामक पाँचवाँ अध्याय संपूर्ण हुआ । 

Share Bhagavad Gita Chapter 5 Verse 29