Srimad Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 40

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति । 
नायं लोकोऽस्ति परो सुखं संशयात्मनः ।।  40 ।। 

विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है ।   ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है ।  (40)

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