Srimad Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 23

गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः । 
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ।।  23 ।। 

जिसकी आसक्ति सर्वथा नष्ट हो गयी है, जो देहाभिमान और ममतारहित हो गया है, जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा के ज्ञान में स्थित रहता है – ऐसा केवल यज्ञसम्पादन के लिए कर्म करने वाले मनुष्य के सम्पूर्ण कर्म भली भाँति विलीन हो जाते हैं ।  (23)

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