Srimad Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 5

गुरुनहत्वा हि महानुभावा
ञ्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके । 
हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव
भुंजीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् ।।  5 ।। 

इसलिए इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूँ, क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूँगा ।  (5)

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