Srimad Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 41

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन । 
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ।।  41 ।।

हे अर्जुन ! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है, किन्तु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियँ निश्चय ही बहुत भेदोंवाली और अनन्त होती हैं ।  (41)

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