अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः । निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ।। 36 ।।
तेरे वैरी लोग तेरे सामर्थ्य की निन्दा करते हुए तुझे बहुत से न कहने योग्य वचन भी कहेंगे । उससे अधिक दुःख और क्या होगा? (36)