Srimad Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 29

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन
माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः । 
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रुणोति
श्रुत्वाप्येनं वेद चैव कश्चित् ।।  29 ।। 

कोई एक महापुरुष ही इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता है और वैसे ही दूसरा कोई महापुरुष ही इसके तत्त्व का आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा दूसरा कोई अधिकारी पुरुष ही इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जानता ।   (29)

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