Srimad Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 25

अव्यक्तोऽयमचिन्तयोऽयमविकार्योऽयमुच्यते । 
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ।।  25 ।। 

यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है ।   इससे हे अर्जुन ! इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है ।   (25)

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