अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरणः । अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ।। 18 ।।
इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गये हैं । इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन ! तू युद्ध कर । (18)