Srimad Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 67

इदं ते नातपस्काय नाभाक्ताय कदाचन । 
चाशुश्रूषवे वाच्यं मां योऽभ्यसूयति ।। 67 ।।

तुझे यह गीता रूप रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, न भक्ति रहित से और न बिना सुनने की इच्छावाले से ही कहना चाहिए तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है उससे तो कभी नहीं कहना चाहिए । (67)

Share Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 67