Srimad Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 33

धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः । 
योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी ।। 33 ।।

हे पार्थ ! जिस अव्यभिचारिणी धारणशक्ति से मनुष्य ध्यानयोग के द्वारा मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है । (33)

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