Srimad Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 32

अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता । 
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ।। 32 ।। 

हे अर्जुन ! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को भी ‘यह धर्म है’ ऐसा मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य सम्पूर्ण पदार्थों को भी विपरीत मान लेती है, वह बुद्धि तामसी है ।  (32)

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