Srimad Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 31

यया धर्ममधर्मं कार्यं चाकार्यमेव च । 
अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ।। 31 ।। 

हे पार्थ ! मनुष्य जिस बुद्धि के द्वारा धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य और अकर्तव्य को भी यथार्थ नहीं जानता, वह बुद्धि राजसी है । (31)

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