Srimad Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 14

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं पृथग्विधम् । 
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पंचमम् ।। 14 ।। 

इस विषय में अर्थात् कर्मों की सिद्धि में अधिष्ठान और कर्ता तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के करण और नाना प्रकार की अलग-अलग चेष्टाएँ और वैसे ही पाँचवाँ हेतु दैव है ।  (14)

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