Srimad Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 26

सद्भावे साधुभावे सदित्येतत्प्रयुज्यते । 
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ।।  26 ।।

‘सत्’ – इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्यभाव में और श्रेष्ठभाव में प्रयोग किया जाता है तथा हे पार्थ ! उत्तम कर्म में भी ‘सत्’ शब्द का प्रयोग किया जाता है । (26)

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