Srimad Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 11
अफलाकांक्षिभिर्यज्ञो विधिदिष्टो य इज्यते ।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः ।। 11 ।।
जो शास्त्रविधि से नियत यज्ञ करना ही कर्तव्य है – इस प्रकार मन को समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्त्विक है । (11)