Srimad Bhagavad Gita Chapter 16 Verse 22

एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः । 
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ।। 22 ।।

हे अर्जुन ! इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त पुरुष अपने कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परम गति को जाता है अर्थात् मुझको प्राप्त हो जाता है । (22)

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