Srimad Bhagavad Gita Chapter 14 Verse 7, 8

रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासंगसमुद्भवम् ।   
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसंगेन देहिनम् ।। 7 ।।   
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।   
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ।। 8 ।।

हे अर्जुन ! रागरूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न जान ।   वह इस जीवात्मा को कर्मों के और उनके फल के सम्बन्ध से बाँधता है ।   सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाले तमोगुण को तो अज्ञान से उत्पन्न जान ।   वह इस जीवात्मा को प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बाँधता है । (7, 8)

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