Srimad Bhagavad Gita Chapter 13 Verse 31

अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्ययः । 
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय करोति लिप्यते ।। 31 ।।

हे अर्जुन ! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न लिप्त ही होता है । (31)

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