Srimad Bhagavad Gita Chapter 13 Verse 30

यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति । 
तत एव विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा ।। 30 ।।

जिस क्षण यह पुरुष भूतों पृथक-पृथक भाव को एक परमात्मा में ही स्थित तथा उस परमात्मा से ही सम्पूर्ण भूतों का विस्तार देखता है, उसी क्षण वह सच्चिदानन्दघन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है । (30)

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