Srimad Bhagavad Gita Chapter 12 Verse 6, 7

ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः । 
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ।। 6 ।। 
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् । 
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ।। 7 ।। 

परन्तु जो मेरे परायण रहने वाले भक्तजन सम्पूर्ण कर्मों को मुझे अर्पण करके मुझ सगुणरूप परमेश्वर को ही अनन्य भक्तियोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं । हे अर्जुन ! उन मुझमें चित्त लगाने वाले प्रेमी भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार-समुद्र से उद्धार करने वाला होता हूँ ।  (6, 7)

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