Srimad Bhagavad Gita Chapter 12 Verse 18, 19

समः शत्रौ मित्रे तथा मानापमानयोः । 
शीतोष्णसुखदुःखेषु समः सङ्गविवर्जितः ।। 18 ।। 
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी संतुष्टो येन केनचित् । 
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ।। 19 ।। 

जो शत्रु-मित्र में और मान-अपमान में सम है तथा सर्दी, गर्मी और सुख-दुःखादि द्वन्द्वों में सम है और आसक्ति से रहित है । जो निन्दा-स्तुति को समान समझने वाला, मननशील और जिस किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही सन्तुष्ट है और रहने के स्थान में ममता और आसक्ति से रहित है – वह स्थिरबुद्धि भक्तिमान पुरुष मुझको प्रिय है । (18, 19)

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