Srimad Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 37

कस्माच्च ते नमेरन्महात्मन्
गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे । 
अनन्त देवेश जगन्निवास
त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत् ।। 37 ।। 

हे महात्मन् ! ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आपके लिए वे कैसे नमस्कार न करें, क्योंकि हे अनन्त ! हे देवेश ! हे जगन्निवास ! जो सत्, असत्, और उनसे परे अक्षर अर्थात् सच्चिदानन्दघन ब्रह्म हैं, वह आप ही हैं । (37)

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