Srimad Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 12

अभिसंधाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् । 
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम् ।। 12 ।। 

परन्तु हे अर्जुन ! केवल दम्भाचरण के लिए अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान । (12)

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