Srimad Bhagavad Gita Chapter 14 Verse 2

इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः ।   
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये व्यथन्ति च ।। 2 ।। 

इस ज्ञान को आश्रय करके अर्थात् धारण करके मेरे स्वरूप को प्राप्त हुए पुरुष सृष्टि के आदि में पुनः उत्पन्न नहीं होते और प्रलयकाल में भी व्याकुल नहीं होते । (2)

Share Bhagavad Gita Chapter 14 Verse 2