Srimad Bhagavad Gita Chapter 9 Verse 12

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः । 
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ।। 12 ।।

वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञानवाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को ही धारण किये रहते हैं । (12)

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