Srimad Bhagavad Gita Chapter 8 Verse 9, 10
कविं पुराणमनुशासितार–
मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः ।
सर्वस्य धातारमचिन्तयरूप–
मादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।। 9 ।।
प्रयाणकाले मनसाचलेन
भक्तया युक्तो योगबलेन चैव ।
भ्रूवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्
स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ।। 10 ।।
जो पुरुष सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियन्ता, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले, अचिन्तयस्वरूप, सूर्य के सदृश नित्य चेतन प्रकाशरूप और अविद्या से अति परे, शुद्ध सच्चिदानन्दघन परमेश्वर का स्मरण करता है, वह भक्तियुक्त पुरुष अन्तकाल में भी योग बल से भृकुटी के मध्य में प्राण को अच्छी प्रकार स्थापित करके, फिर निश्चल मन से स्मरण करता हुआ उस दिव्यरूप परम पुरुष परमात्मा को ही प्राप्त होता है । (9, 10)