Srimad Bhagavad Gita Chapter 8 Verse 5
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्तवा कलेवरम् ।
यः प्रयाति सं मद् भावं याति नास्त्यत्र संशयः ।। 5 ।।
जो पुरुष अन्तकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात् स्वरूप को प्राप्त होता है – इसमें कुछ भी संशय नहीं है । (5)