Srimad Bhagavad Gita Chapter 8 Verse 3
श्रीभगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यातममुच्यते ।
भूतभावोद् भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ।। 3 ।।
श्रीमान भगवान ने कहाः परम अक्षर ‘ब्रह्म’ है, अपना स्वरूप अर्थात् जीवात्मा ‘अध्यात्म’ नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह ‘कर्म’ नाम से कहा गया है । (3)