Srimad Bhagavad Gita Chapter 6 Verse 9

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु । 
साधुष्वपि पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ।।  9 ।। 

सुहृद्, मित्र, वैरी उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य और बन्धुगणों में, धर्मात्माओं में और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यन्त श्रेष्ठ है ।  (9)

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