Srimad Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 32

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे । 
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ।।  32 ।। 

इसी प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गये हैं ।   उन सबको तू मन इन्द्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा सम्पन्न होने वाला जान ।   इस प्रकार तत्त्व से जानकर उनके अनुष्ठान द्वारा तू कर्मबन्धन से सर्वथा मुक्त हो जाएगा ।  (32)

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