आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ।। 39 ।।
और हे अर्जुन ! इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले कामरूप ज्ञानियों के नित्य वैरी के द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढका हुआ है । (39)