Srimad Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 16

तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः । 
पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न पश्यति दुर्मतिः ।। 16 ।।

परन्तु ऐसा होने पर भी जो मनुष्य अशुद्ध बुद्धि होने के कारण उस विषय में यानी कर्मों के होने में केवल शुद्धस्वरूप आत्मा को कर्ता समझता है, वह मलिन बुद्धिवाला अज्ञानी यथार्थ नहीं समझता । (16)

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