Srimad Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 10

द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते । 
त्यागी सत्त्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः ।। 10 ।। 

जो मनुष्य अकुशल कर्म से द्वेष नहीं करता और कुशल कर्म में आसक्त नहीं होता – वह शुद्ध सत्त्वगुण से युक्त पुरुष संशयरहित, बुद्धिमान और सच्चा त्यागी है । (10)

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